मन की सोची बनती कोन्या (हरियाणवी)
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इस रागणी म्हं बताया गया है के आदमी चाहे कितणा भी स्याणा बणले और अपणे मन म्हं चाहे कुछ भी सोचले लेकिन होणा वो ऐ है जो भगवान चाहवैगा, कवि नै उदाहरण दिए हैं इस रागणी म्हं के किसे की भी मन की सोची कोन्या बनती।